बिहार चुनाव में जेएमएम की उपेक्षा से महागठबंधन में दरार, झारखंड की राजनीति में बड़े उलट-फेर के संकेत
न्यूज फायर की स्पेशल रिपोर्ट
रांची : बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन में शामिल दलों की साजिश का शिकार होने के बाद जेएमएम का गुस्सा पूरे उफान पर है. गुस्से की यह खदबदाहट ज्वालामुखी की तरह कब व कैसे फटेगा और इसका राजनीतिक प्रभाव कहां तक पड़ेगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा, लेकिन बिहार में गठबंधन दल का अगुवा रहे राजद ने जेएमएम को जिस तरह से धोखा दिया है पार्टी उसे बर्दाश्त करने की स्थिति में फिलहाल नहीं दिख रही है.
जेएमएम के थिंक टैंक के रूप में जाने जानेवाले झारखंड सरकार के मंत्री सुदिव्य कुमार ने नये राजनीतिक परिदृश्य में जो संकेत दिया है उसे हल्के में नहीं लिया जा सकता है.
प्रेस कांफ्रेंस कर श्री कुमार स्पष्ट कहा है कि इसका खामियाजा गठबंधन दल में शामिल राजनीतिक दलों को भुगतना पड़ेगा. फिलहाल पार्टी का गुस्सा राजद और कांग्रेस के ऊपर दिख रहा है लेकिन यह भी सत्य है कि भाजपा से दूरी बनाए रखते हुए झारखंड में सरकार चलाने के लिए जेएमएम दोनों दलों का शिकार एक साथ करने की स्थिति में फिलहाल नहीं है. झारखंड विधानसभा में महागठबंधन के पास जेएमएम की 34 सीटों समेत कुल 56 सीट हैं जिसमें कांग्रेस की 16 और राजद की 4 सीटें हैं. इन दोनों को बाहर का रास्ता दिखाने के बाद जेएमएम के पास दो वामपंथी विधायकों के साथ मात्र 36 सीटें ही रह जाती है जिसमें घाटशिला की एक सीट फिलहाल अटकी हुई है सरकार बनाने के लिए 41 सीटों की जरूरत है. एक साथ कांग्रेस और राजद के हटने से जेएमएम बहुमत में नहीं रहेगी. ऐसे में जेएमएम के गुस्से का पहला शिकार राजद का होना तय माना जा रहा है. राजद से नाता तोड़ने पर झारखंड में झामुमो के नेतृत्व वाली सरकार के सेहत पर कोई बुरा असर नहीं पड़ेगा. झारखंड में सरकार पर असर पड़ने के एक सवाल पर मंत्री सुदिव्य कुमार ने भी दबी जुबान दलों की संख्या का आकलन कर लेने की ओर इशारा भी कर दिया है. जाहिर है, कभी भी राजद को बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है.
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में भी राजद ने दिया था धोखा
मौजूदा हालात पर गौर करें तो झारखंड की राजनीति में बड़े उलट फेर के भी संकेत मिल रहे हैं. राजद की इस नई राजनीतिक चाल का शिकार होने और इस पूरे घटना पर कांग्रेस की चुप्पी ने जेएमएम को महागठबंधन में शामिल राजनीतिक दलों के क्रियाकलापों की समीक्षा करने के लिए विवश कर दिया है.
मंत्री सुदिव्य ने भी स्पष्ट किया है कि पार्टी गठबंधन की जल्द ही समीक्षा करेगी.
जाहिर है, राजद और कांग्रेस की साजिश पर चर्चा होगी और इसका खामियाजा दोनों दलों को भुगतना पड़ सकता है. जेएमएम के एक सूत्र की मानें तो राजद ने जेएमएम का हमेशा अपने हित में इस्तेमाल किया है. बिहार विधानसभा चुनाव 2015 में राजद को मजबूत करने के लिए जेएमएम ने राजद के इशारे और उसके मन मुताबिक ही अपना उम्मीदवार तीन सीटों पर उतारा था. गौर करें तो बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में भी राजद ने झामुमो को धोखा दिया था. उस वक्त भी राजद ने तीन सीट देने पर सहमति जताई थी और फिर अंतिम समय में उन सीटों को भी बदल दिया था. फलस्वरुप 2020 के चुनाव में भी अंततः तालमेल टूट गया था. ऐसे में जेएमएम ने 5 सीटों पर अपना उम्मीदवार अकेले अपने बूते उतार दिया था. हालांकि इस चुनाव में किसी भी सीट पर जेएमएम अपनी जीत दर्ज नहीं करा पाई थी. हार के बाद भी चकाई विधानसभा सीट पर जेएमएम ने अच्छी उपस्थिति दर्ज कराई थी.
बहरहाल, बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर वर्तमान में जिस तरह की परिस्थितियों उत्पन्न हुई है और जेएमएम के मंत्री ने जिस तरह से कठोर शब्दों का इस्तेमाल किया है, उससे यह तो स्पष्ट हो ही गया है कि राजद से जेएमएम का बिल्कुल मोह भंग हो चुका है. ऐसे में अब राजद जेएमएम का पहला शिकार होगा.
जेएमएम की बढ़ सकती है भाजपा से नजदीकियां
जेएमएम का मानना है कि उसने गठबंधन चलाने के लिए हर बार समझौता किया है. उसने झारखंड में राजद और कांग्रेस को मंत्रिमंडल में उसकी औकात से ज्यादा सीटें दी है. चाहे चुनाव में सीट शेयरिंग का मामला हो या झारखंड में सरकार बनाने का मामला, जेएमएम ने गठबंधन चलाने के लिए हमेशा त्याग किया है. 2014, 2019 और 2024 के चुनाव में हमने अच्छी स्थिति रहने के बाद भी कई सीटें सहयोगी दल के लिए छोड़ दिया. 2019 और 2024 में सरकार बनाने के दौरान भी सहयोगी दलों को बेहतर भागीदारी दी गई. ऐसे में बिहार चुनाव में सीट शेयरिंग पर गंभीरता से चर्चा किए बिना जेएमएम को बाहर का रास्ता दिखा देना कहां तक उचित है ?

इन परिस्थितियों में यदि जेएमएम अपना गुस्सा राजद और कांग्रेस पर उतारने का निर्णय लेती है तो भाजपा को साथ लेकर चलना उसकी मजबूरी होगी. पिछले कुछ दिनों से जेएमएम और भाजपा के रिश्तों में तल्खी भी कम देखी जा रही है. साथ ही, अब यह भी आकलन शुरू हो गया है कि जेएमएम को सबसे ज्यादा नुकसान अब तक किन-किन दलों ने पहुंचाया है. पार्टी के लोगों का मानना है कि कांग्रेस की वजह से ही जेएमएम सुप्रीमो शिबू सोरेन को जेल जाना पड़ा था और अलग राज्य के गठन में भी कांग्रेस हमेशा टालमटोल करती रही थी. जबकि राजद भी सिर्फ अपने हितों के लिए जेएमएम का इस्तेमाल करता रहा है. राजद अलग झारखंड राज्य के गठन का भी विरोधी रहने के साथ-साथ जेएमएम को हमेशा धोखा देने का काम किया.

बनते बिगड़ते राजनीतिक समीकरणों की वजह से भले ही जेएमएम और भाजपा एक दूसरे का राजनीतिक रूप से विरोधी रहा है, पर माना जा रहा है कि भाजपा ने जेएमएम को कभी कोई बड़ा नुकसान नहीं किया है. साथ ही यह भी सच है कि मंईया योजना के बदौलत भले ही जेएमएम झारखंड में सरकार बनाने में सफल रही लेकिन इससे उत्पन्न वित्तीय संकट से उबर नहीं पा रही है. इस वित्तीय संकट का समाधान भाजपा से जुड़कर निकालने का प्रयास जेएमएम कर सकती है. पूर्व में भी भाजपा और झामुमो ने मिलकर झारखंड में सरकार बनाया है. ऐसे में पुनः परिस्थितियां दोनों दलों को नजदीक आने के लिए विवश कर रही है.
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