गिरिडीह. गिरिडीह जिले के डुमरी में आदिवासी समाज के लोगों के द्वारा आज एक जन आक्रोश रैली निकाला गया जिसमें कुडमी समुदाय द्वारा आदिवासी सूची में शामिल करने की मांग का पुरजोर विरोध किया गया. इस रैली में डुमरी प्रखंड एवं पीरटांड़ प्रखंड के विभिन्न आदिवासी गांव से सैकड़ों की संख्या में आदिवासी समाज के महिला-पुरुष व वृद्ध पारंपरिक हथियार को लेकर जुलूस में शामिल हुए. जुलूस की शुरुआत डुमरी के केबी हाई स्कूल के मैदान से शुरू हुई जो इसरी बाजार का भ्रमण करते हुए पुनः डुमरी केबी हाई स्कूल मैदान में पहुंचकर सभा में तब्दील हो गई जहां निशा भगत, सिकंदर हेम्ब्रम समेत अन्य आदिवासी नेताओं ने अपनी अपनी बातों को रखते हुए कुड़मी समुदाय द्वारा आदिवासी सूची में शामिल करने की मांग का पुरजोर विरोध किया. जुलूस के दौरान आदिवासी समाज के लोगों ने डुमरी विधायक जयराम महतो एवं आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो का पूरजोर विरोध किया. सिकंदर हेंब्रम ने कहा कि महतो मांझी एकजुटता की नारा देने वाले आज कुर्सी में बैठे हुए हैं जबकि कानूनी तौर पर कुडमी जाति की इस मांग को केंद्र सरकार ने 2024 में ही खारिज कर दिया है उन्होंने कहा कि महतो और मांझी की लड़ाई में निहत्थे लोग सड़क पर उतर रहे हैं जो बिल्कुल गलत है. इसलिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को चाहिए कि दोनों समुदाय के प्रमुख लोगों को बैठा कर संवैधानिक रूप से लड़ाई लड़ने की अपील करना चाहिए परंतु अपनी राजनीतिक रोटी सेकने के लिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन चुपचाप हैं इससे साफ पता चलता है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन आदिवासी समाज को ठगने का काम कर रहे हैं. इस दौरान आदिवासी नेता निशा भगत ने कहा कि आदिवासी इस देश का मूल नागरिक है. जहां आदिवासी समाज लगातार देश के लिए अपनी बलिदानी दी है. आदिवासियों की हकमारी बर्दाश्त नहीं की जाएगी. उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि 1871 में मुगलों एवं अंग्रेजों के साथ आदिवासी लड़ाई की थी, उस समय कुड़मी समाज के लोग कहां थे, आज कुड़मी समाज आरक्षित सीटों पर सेंधमारी करने के लिए सरकार से अपनी मांग कर रही है. इसको लेकर उन्होंने कुड़मी समाज को आदिवासी सूची में शामिल करने की मांग के विरोध में जन आक्रोश महारैली का आयोजन किया गया. इसके अलावा निशा भगत ने झारखंड में लगातार आदिवासी मुख्यमंत्री होने के बावजूद झारखंड में सीएनटी एसपीटी एक्ट उल्लंघन हो रहा है इसको लेकर भी उन्होंने विरोध जताया है.
